Monday, November 17, 2025

The First Sensitive Film on Menopause to Hit Theatres on November 28

 Monday 17th November 2025 From Film Unit Media 

Audience Waiting for Hindi feature film “Me-No-Pause-Me-Play


Chandigarh
: 17th November 2025: (Media Link Ravinder//Punjab Screen Special)::

Menopause. It’s a phase every woman goes through, yet it remains one of the least discussed topics in our homes. Many women face physical and emotional changes during this time, often feeling confused, isolated, or misunderstood. To bring this important conversation into the mainstream, cinema is stepping forward with a powerful message.

Releasing on November 28 is the Hindi feature film “Me-No-Pause-Me-Play.” This film aims to portray the journey of menopause with honesty, warmth and sensitivity. Presented by Digifilming and Miro Films, the film has been written by Manoj Kumar Sharma, adapted from his own book, and produced by him as well. His vision forms the backbone of the film, giving it both authenticity and depth.

“Me-No-Pause-Me-Play” blends light comedy with real-life emotions, making the subject approachable for every viewer. The film shows that menopause is not a sign of weakness or an ending. It is a natural stage of life that deserves understanding, dignity and support. The story highlights how empathy from family members can transform this phase into a more comfortable and positive experience for women.

The movie features a strong cast, including Kamiya Punjabi, Deepshikha Nagpal, Manoj Kumar Sharma, Aman Verma, Sudha Chandran and Amemi Subah. Their performances bring honesty and heart to the screen. Kamiya Punjabi shared that the film gives voice to every woman who goes through these silent changes but rarely gets the space to express them.

The film also emphasizes the role of relationships. It shows how a woman’s emotional well-being during menopause can be deeply affected by the understanding—or the lack of it—she receives from her family. It highlights how simple awareness and emotional support can make this journey smoother.

“Me-No-Pause-Me-Play” is more than entertainment. It’s an effort to start a conversation that is long overdue. It encourages society to replace silence with awareness and stigma with acceptance.

The film releases in theatres on November 28. Viewers are encouraged to watch it with their families and friends so that this important message reaches every home.

Friday, November 14, 2025

2027 ਵੱਲ ਜਾਂਦੇ ਰਸਤੇ ਦੇਖੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ਤਰਨਤਾਰਨ ਦੇ ਚੋਣ ਨਤੀਜਿਆਂ ਨਾਲ

Posted on Friday 14th November 2025 at 02:30 PM Regarding Tarn Taran Election Result (Punjab Screen Special)
ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੋਸਟ ਸਹੀ ਮਾਰਗ ਦਿਖਾਉਣ ਵਾਲੀ ਵੀ ਹੈ

ਤਰਨਤਾਰਨ
//ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ//ਮੋਹਾਲੀ: 14 ਨਵੰਬਰ 2025: (ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਸਪੈਸ਼ਲ ਡੈਸਕ)::
ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ 
ਤਰਨਤਾਰਨ ਦੀ ਜ਼ਿਮਨੀ ਚੋਣ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵੀ ਆ ਗਏ ਹਨ।
ਇਸ ਵਾਰ ਵੀ "ਪੰਥਕ" ਅਖਵਾਉਂਦੀਆਂ ਧਿਰਾਂ ਕੋਲ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਵਰਗਾ ਦੱਸਣ ਲਈ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਉਂਝ ਅਜਿਹੇ ਨਤੀਜੇ ਸਿਆਸੀ ਅਤੇ ਵਿਚਾਰਧਾਰਕ ਹਲਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਕਿਆਸੇ ਜਾ ਚੁੱਕੇ ਹਨ। ਬਲਿਊ ਸਟਾਰ ਆਪ੍ਰੇਸ਼ਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਅਤੇ ਬਲਿਊ ਸਟਾਰ ਅਪ੍ਰੇਸ਼ਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਅਤੇ ਨਿਸ਼ਾਨਿਆਂ ਵਿੱਚ  ਕੋਈ ਸਪਸ਼ਟ ਨਿਖਾਰ ਨਹੀਂ ਲਿਆ ਸਕੇ।

ਨਵੰਬਰ-84 ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਡੇੜ ਦਹਾਕੇ ਤੱਕ ਚੱਲੇ ਜੁਝਾਰੂ ਸੰਘਰਸ਼ ਮਗਰੋਂ ਵੀ ਸਾਡੇ ਸਿਆਸੀ ਲੀਡਰਾਂ ਕੋਲ ਨੌਜਵਾਨ ਪੀੜ੍ਹੀ ਨੂੰ ਦੱਸਣ ਲਈ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੈ ਜਿਸ ਤੋਂ ਉਹ ਮਾਰਗ ਦਰਸ਼ਨ ਲੈ ਸਕਣ। ਇਹਨਾਂ ਠੋਸ ਹਕੀਕਤਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਜੋ ਜੋ ਕੁਝ ਵੀ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਜਿਹੜੇ ਜਿੰਦੇ ਕਦਮ ਵੀ ਪੁੱਟੇ ਇਹ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹਿੰਮਤ ਹੀ ਹੈ।  

ਇਹਨਾਂ ਰਾਹਾਂ 'ਤੇ ਗਲਤੀਆਂ ਵੀ ਹੋਈਆਂ ਹੋਣਗੀਆਂ ਪਰ ਇਹ ਸੁਭਾਵਕ ਹੀ ਸਨ। ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਦੇ ਚੋਣ ਨਤੀਜਿਆਂ ਮਗਰੋਂ ਕਈ ਵਿਚਾਰ ਅਤੇ ਟਿੱਪਣੀਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਆਈਆਂ ਹਨ।  ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਪੋਸਟ ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਹੁਰਾਂ ਦੀ ਵੀ ਹੈ। ਉਹੀ ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਜਿਹੜੇ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਤੀਕਰਮ, ਆਪਣੀ ਟਿੱਪਣੀ, ਆਪਣਾ ਵਿਚਾਰ ਸਮੇਂ ਦੇ ਐਨ ਮੁਤਾਬਿਕ ਤੁਰੰਤ ਸਾਹਮਣੇ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ਬਿਨਾ ਕਿਸੇ ਭਰਮ ਭੁਲਖੇ ਜਾਂ ਓਹਲੇ ਦੇ..---:

ਪੰਜਾਬ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਮੁੱਦੇ ਵੇਲੇ ਵੀ ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਹੁਰਾਂ ਨੇ ਬੜਾ ਵੇਲੇ ਸਿਰ ਸਟੈਂਡ ਲਿਆ ਅਤੇ ਹੁਣ ਵੀ ਜਦੋਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਪੰਥਕ ਅਤੇ ਸਿਆਸੀ ਧਿਰਾਂ ਖੁਦ ਨੂੰ ਬੇਦਿਲ ਜਾਂ ਹਾਰਿਆ ਹੋਇਆ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਪਾਲੀ ਹੁਰਾਂ ਦੀ ਲਿਖਤ ਰਾਹ ਦਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ। 

Thursday, November 13, 2025

धर्मेंद्र के स्वास्थ्य को लेकर मीडिया के एक हिस्से ने दिखाई थी जल्दबाज़ी..!

Sent on Wednesday 12th November 2025 WhatsApp Regarding He Man Dharmendra From Neelima Sharma

A Special Post By Neelima Sharma:  

लेखिका नीलिमा शर्मा ने किया मीडिया के उस कलंक को धोने का प्रयास 

हिंदी कलम की दुनिया के विशेष हस्ताक्षर नीलिमा शर्मा: 13 नवंबर 2025: (पंजाब स्क्रीन स्पेशल डेस्क)

फिल्मी दुनिया के सबसे लोकप्रिय और प्रिय सितारों में गिने जाने वाले धर्मेंद्र भारतीय सिनेमा के ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने न केवल अपने अभिनय से बल्कि अपने सरल और स्नेहिल व्यक्तित्व से भी दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी। पंजाब के लुधियाना ज़िले के एक गाँव में 8 दिसंबर 1935 को जन्मे धर्मेंद्र बचपन से ही सादगी, मेहनत और आत्मविश्वास का प्रतीक रहे। एक सामान्य कृषक परिवार से निकलकर उन्होंने फिल्मी जगत में जो पहचान बनाई, वह किसी प्रेरणा से कम नहीं। Bollywood के He Man धर्मेंद्र को लेकर मीडिया के एक हिस्से ने दिखाई थी जल्दबाज़ी  

लेखिका नीलिमा शर्मा दिल्ली से 
धर्मेंद्र का फिल्मी सफर 1960 में फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे से शुरू हुआ। शुरूआती संघर्षों के बाद उन्होंने जल्द ही अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। 1966 में आई फिल्म फूल और पत्थर ने उन्हें रातोंरात सुपरस्टार बना दिया। उनकी दमदार संवाद अदायगी, व्यक्तित्व और भावनाओं की सच्चाई ने उन्हें हर वर्ग के दर्शकों का चहेता बना दिया। साठ और सत्तर के दशक में धर्मेंद्र ने एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में दीं,अनुपमा, सत्यकाम, शोले, चुपके-चुपके, राजा जानी, मेरा गाँव मेरा देश, ड्रीम गर्ल, शराबी, प्रतिज्ञा जैसी फिल्मों ने उन्हें बहुआयामी अभिनेता सिद्ध किया। वे जहाँ एक ओर एक्शन हीरो के रूप में “ही-मैन ऑफ बॉलीवुड” कहलाए, वहीं सत्यकाम जैसी गंभीर फिल्मों में उन्होंने अपनी भावनात्मक गहराई से आलोचकों को भी प्रभावित किया। एक युग था धर्मेंद्र जी का। लोग उनके दीवाने थे। उनकी निजी ज़िंदगी में लोग उनके जज़्बातों से जुड़े हुए थे। 

उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्म शोले में वीरू का किरदार आज भी भारतीय सिनेमा का प्रतीकात्मक पात्र माना जाता है। बसंती के साथ उनकी जोड़ी ने पर्दे पर प्रेम की मासूमियत और खिलंदड़पन दोनों को बड़ी सहजता से जीया। वहीं चुपके-चुपके में उन्होंने हास्य अभिनय का जो स्वाद दिया, वह दर्शकों को आज भी आनंदित करता है। धर्मेंद्र की खासियत रही कि वे किसी भी किरदार को पूरी सच्चाई से जीते थे, चाहे वह रोमांटिक नायक हो या समाज के अन्याय के खिलाफ खड़ा किसान।

व्यक्तिगत जीवन में धर्मेंद्र उतने ही भावुक और रूमानी व्यक्ति  रहे हैं। उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर से दो  बेटियां और दो बेटे सनी और बॉबी देओल हैं, जो स्वयं सफल अभिनेता बने। बाद में धर्मेंद्र ने अभिनेत्री हेमा मालिनी से विवाह किया, जिनसे उनकी दो बेटियाँ  Esha और अहाना देओल हैं। पारिवारिक रिश्तों में भी धर्मेंद्र की सहजता और अपनापन हमेशा दिखाई देता है। वे अपने बच्चों के करियर पर गर्व करते हैं और उनके जीवन में सदैव प्रेरक भूमिका निभाते हैं।

राजनीति में भी धर्मेंद्र ने कदम रखा। 2004 में वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर बीकानेर से सांसद चुने गए। यद्यपि उन्होंने राजनीति में अधिक सक्रिय भूमिका नहीं निभाई, फिर भी जनता से उनका जुड़ाव और सादगी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता था। सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2012 में पद्म भूषण सम्मान से अलंकृत किया, जो उनके दशकों लंबे सिने-जीवन का सम्मान था।

कल सोशल मीडिया पर धर्मेंद्र की मृत्यु से जुड़ी झूठी खबरें फैलने से फिल्म जगत में हलचल मच गई। कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और television channel पर यह अफवाह चल पड़ी कि धर्मेंद्र अब नहीं रहे। यह खबर इतनी तेज़ी से वायरल हुई कि कई लोगों ने बिना पुष्टि के श्रद्धांजलि संदेश तक साझा कर दिए। ऐसे में जब धर्मेंद्र का परिवार आगे आया, तो सच्चाई सामने आई। उनकी पत्नी हेमा मालिनी ने तीखी नाराज़गी जताई और कहा कि “ऐसी अफवाहें फैलाना बेहद अमानवीय है। धर्मेंद्र स्वस्थ हैं और उपचाराधीन हैं।” बेटी ईशा देओल ने भी स्पष्ट किया कि “पापा बिल्कुल स्थिर हैं, कृपया इस तरह की झूठी खबरों पर ध्यान न दें।”

इस अफवाह ने न केवल धर्मेंद्र के चाहने वालों को व्यथित किया, बल्कि एक बार फिर यह सवाल उठाया कि सोशल मीडिया के इस दौर में खबरों की सत्यता की जिम्मेदारी कौन लेगा। बिना किसी प्रमाण या आधिकारिक पुष्टि के किसी व्यक्ति के जीवन या मृत्यु से जुड़ी खबरें फैलाना न केवल असंवेदनशीलता है बल्कि मानवीय गरिमा का भी उल्लंघन है। धर्मेंद्र जैसा जीवंत व्यक्तित्व, जिसने भारतीय सिनेमा को इतने यादगार पल दिए, उनके बारे में ऐसी अफवाहें फैलना दुखद है।

धर्मेंद्र का जीवन सादगी और प्रेम का पर्याय रहा है। वे आज भी अपने खेतों, पशुओं और मिट्टी से जुड़े हैं। फिल्मों की चकाचौंध के बीच भी उन्होंने अपने मूल को कभी नहीं भुलाया। यही कारण है कि दर्शक आज भी उन्हें केवल अभिनेता नहीं, बल्कि एक इंसान के रूप में सम्मान देते हैं। उनका व्यक्तित्व यह संदेश देता है कि सच्ची सफलता वही है जो विनम्रता और अपनापन बनाए रखे।

उनकी मुस्कान, संवादों की आत्मीयता, और जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण ने उन्हें न केवल “ही-मैन” बल्कि “ह्यूमन हीरो” बना दिया। धर्मेंद्र ने अपने जीवन और काम से यह सिद्ध किया कि सितारा वही होता है जो समय के पार भी लोगों के दिलों में उजाला छोड़ जाए।

आज जब अफवाहों के इस डिजिटल युग में सत्य और असत्य के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है, धर्मेंद्र जैसे जीवंत कलाकार की गरिमा को समझना और उनका सम्मान करना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है। उनकी यात्रा इस बात का उदाहरण है कि सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का दर्पण भी है। धर्मेंद्र की सादगी, भावनात्मक गहराई और प्रेमपूर्ण व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा रहेगा—क्योंकि धर्मेंद्र केवल अभिनेता नहीं, भारतीय सिनेमा की आत्मा हैं।

धर्मेंद्र का जीवन एक प्रेरक यात्रा है—संघर्ष से सफलता तक, प्रेम से परिवार तक, और सिनेमा से समाज तक। उन्होंने जो कुछ भी किया, पूरे मन और समर्पण से किया। आज जब उनके निधन की झूठी खबरें फैलती हैं, तो यह केवल एक अफवाह नहीं होती—यह उस युग की गरिमा पर चोट होती है जिसने भारतीय सिनेमा को आत्मा दी थी।

धर्मेंद्र आज भी हमारे बीच हैं जीवित, सक्रिय और दर्शकों के प्रेम से भरे हुए। उनके चाहने वालों की एक ही कामना है कि वे शीघ्र पूर्ण स्वस्थ हों और अपनी वही गर्मजोशी और मुस्कान के साथ जीवन की फिल्म में अगला अध्याय लिखें। क्योंकि धर्मेंद्र कोई नाम नहीं एक भाव हैं, एक संवेदना हैं, और भारतीय सिनेमा की अमिट पहचान हैं।  ---नीलिमा  शर्मा

[00:11, 12/11/2025] Neelima Sharma: नीलिमा  शर्मा 

Wednesday, November 12, 2025

19 ਸਾਲਾ ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸੁਮ ਲਈ ਖ਼ੁਦਾ ਬਣਕੇ ਬਹੁੜੇ ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ

Emailed From GSG on Wednesday 12th November 2025 at 6:37 PM Regarding A Miracle By A Doctor

ਹੱਡੀ ਦੇ ਕੈਂਸਰ ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਕਸ਼ਮੀਰੀ ਬੱਚੀ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ DMC ਵਿੱਚ ਨਵੀਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ


ਲੁਧਿਆਣਾ
: 12 ਨਵੰਬਰ 2025: (ਮੀਡੀਆ ਲਿੰਕ ਰਵਿੰਦਰ//ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਸਪੈਸ਼ਲ ਡੈਸਕ) -

ਜੰਮੂ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਪੁੰਛ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ 19 ਸਾਲਾ ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸਮ ਪਿਛਲੇ 3-4 ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਨਰਕ ਭਰੀ ਜ਼਼ਿੰਦਗੀ  ਜਿਉਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਪੱਟ ਵਿੱਚ ਅਨੋਖੇ ਕੈਂਸਰ  ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਸੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਸਨੂੰ ਬੜਾ ਭਿਆਨਕ ਦਰਦ ਸਹਿਣਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਸੀ।

ਵਹੀਦਾ  ਤਬੱਸਮ ਦੇ ਪਿਤਾ ਸਵਰਗੀ ਰਾਸ਼ਿਦ ਖਾਨ ਘਰ ਵਿੱਚ ਇਕੱਲੇ ਕਮਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸਨ ਜੋ ਦੋ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਉਹ ਵੀ ਇਸ ਦੁੱਖ ਦੀ ਘੜੀ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਬੇਸਹਾਰਾ ਛੱਡ ਕੇ  ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਅਲਵਿਦਾ ਕਹਿ ਗਏ।

ਦਯਾਨੰਦ ਮੈਡੀਕਲ ਕਾਲਜ ਐਂਡ ਹਸਪਤਾਲ (ਡੀ.ਐਮ.ਸੀ.ਐਚ.) ਦੇ ਹੱਡੀਆਂ ਨਾਲ ਸਬੰਧਿਤ  ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਅਸਿਸਟੈਂਟ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸੁਮ ਨੂੰ ਰੱਬ ਬਣਕੇ ਬਹੁੜੇ। 

ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ ਨੇ  ਇਨਸਾਨੀਅਤ ਦੀ ਮਿਸਾਲ ਕਾਇਮ ਕਰਦਿਆਂ ਨਾ ਸਿਰਫ ਉਸਦੀ ਸਰਜਰੀ ਹੀ ਕੀਤੀ ਸਗੋਂ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰਕ ਮਿੱਤਰਾਂ ਤੇ ਸਾਥੀ  ਡਾਕਟਰ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਇਲਾਜ਼ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਵੀ ਚੁੱਕਿਆ।

ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸੁਮ ਦੇ ਟਿਊਮਰ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੀਟੀ-ਗਾਈਡਡ ਆਰ ਐਫ ਏ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਹੁਣ ਉਸਨੂੰ ਦਰਦ ਤੋਂ ਰਾਹਤ ਮਿਲੀ ਹੈ। ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਹੇਠ ਜਲਦ ਤੰਦਰੁਸਤ ਹੋਣ ਦਾ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ।

ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸਮ  ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਦੀ ਬੇਟੀ ਨੂੰ ਨਵੀਂ ਜਿੰਦਗੀ ਦੇਣ ਲਈ ਇਨਸਾਨ ਪ੍ਰਸਤ ਦਰਦਮੰਦ ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ ਸਮੇਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਰਜਰੀ ਸਹਿਯੋਗੀਆਂ ਤੇ ਆਰਥਿਕ ਮਦਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਡਾਕਟਰ ਭਾਈਚਾਰੇ ਤੇ ਦਾਨਵੀਰਾਂ  ਦਾ ਦਿਲੋਂ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ ਹੈ।

Monday, November 10, 2025

ਜਿਹੜੇ ਵੀ ਆਪਣੀ ਔਲਾਦ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਲਈ ਫ਼ਿਕਰਮੰਦ ਹਨ...

Emailed from Sanjeevan-nat-karmi on Monday 10ਰਗ+th November 2025 at 5:33 PM Regarding PU Bachao Morcha 

....ਓਹ ਪੰਜਾਬ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਮੋਰਚੇ ਵਿੱਚ ਅੱਗੇ ਆਉਣ-ਸੰਜੀਵਨ

ਸਿੱਖਿਆ, ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਤੋਂ ਜਾਣਬੁਝ ਕੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵਾਂਝੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ-ਸੰਜੀਵਨ


ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ
: 10 ਨਵੰਬਰ 2025: (ਮੀਡੀਆ ਲਿੰਕ ਰਵਿੰਦਰ//ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਸਪੈਸ਼ਲ ਡੈਸਕ)::

ਇਹ ਅਜੇ ਐਤਵਾਰ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ। ਤਾਰੀਖ ਸੀ 09 ਨਵੰਬਰ। ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨਾਟ ਕਰਮੀ ਸੰਜੀਵਨ ਪੰਜਾਬ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਬਚਾਓ ਮੋਰਚੇ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀਆਂ ਸਮੇਤ ਪੁੱਜੇ ਹੋਏ ਸਨ। ਉਸ ਵੇਲੇ ਮੋਰਚੇ ਵਿੱਚ ਮੈਂਬਰ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ ਵੀ ਸਨ। ਨਿਹੰਗ ਵੀ ਸਨ। ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਵੀ ਅਤੇ ਅਤੇ ਕਈ ਹੋਰ ਸੰਗਠਨਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀ ਵੀ। ਉਂਝ ਟਰੈਕਟਰਾਂ ਦਾ ਆਉਣਾ ਜਾਣਾ ਛੇ ਨਵੰਬਰ ਤੋਂ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ। ਮੋਰਚੇ ਦੀ ਚੜ੍ਹਦੀਕਲਾ ਵਾਲਾ ਮਾਹੌਲ ਦੇਖ ਕੇ ਕਈ ਲੋਕ ਅੱਖ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਇਹ ਰੰਗ ਵੀ ਹੁਣ ਦਿੱਲੀ ਵਾਲੇਕਿਸਾਨ ਮੋਰਚੇ ਦਾ ਹੀ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। 

ਉਹਨਾਂ ਹਲੂਣਾ ਦੇਂਦਿਆਂ ਆਖਿਆ-ਸੈਨੇਟ ਬਚਾਓ, ਪਾਣੀ ਬਚਾਓ, ਧੀਆਂ ਬਚਾਓ, ਵਾਤਾਵਰਣ ਬਚਾਓ, ਸਭਿਆਚਾਰ ਬਚਾਓ, ਭਾਸ਼ਾ ਬਚਾਓ, ਪੰਜਾਬੀ ਬਚਾਓ, ਪੰਜਾਬੀਅਤ ਬਚਾਓ। ਕੀ ਇਹ ਸਭ ਬਚਾਉਣ ਦੀ ਜ਼ੁੰਮੇਵਾਰੀ ਸਾਡੇ ਵਰਗੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਹੈ? ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਕਰਨਾ ਹਾਕਿਮਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਇਖ਼ਲਾਕੀ ਫਰਜ਼ ਨਹੀਂ? ਜਾਂ ਫੇਰ ਹਰ ਕਿਸਮ ਹਰ ਨਸਲ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਕ ਧਿਰ ਦੀ ਅੱਖ ਸੱਤਾ 'ਤੇ ਹੀ ਟਿੱਕੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ?

ਸਮੂਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸੰਗਠਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਿਰਸਟੀ ਸੈਨੇਟ ਬਚਾਓ ਮੋਰਚੇ ਦੀ ਹਮਾਇਤ ਕਰਦਿਆਂ ਇਪਟਾ, ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਨਾਟਕਕਾਰ ਅਤੇ ਨਾਟ-ਨਿਰਦੇਸ਼ਕ ਸੰਜੀਵਨ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਹਮਾਇਤ ਕਰਨਾ ਹਰ ਉਸ ਵਿਆਕਤੀ ਦਾ ਫਰਜ਼ ਹੈ ਜੋ ਆਪਣੀ ਔਲਾਦ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਲਈ ਫ਼ਿਕਰਮੰਦ ਹੈ। ਸਿੱਖਿਆ, ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਤੋਂ ਜਾਣ ਬੁੱਝ ਕੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਮੇਂ ਦੇ ਹਾਕਿਮਾਂ ਵੱਲੋਂ ਵਾਂਝੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿੳਂਕਿ ਸਿਖਿਅਤ ਅਤੇ ਤੰਦਰੁਸਤ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਹੱਕ ਮੰਗਣਗੇ। ਹਾਕਿਮ ਨੂੰ ਪਾਲੂਤ ਜਾਨਵਰਾਂ ਵਾਂਗ ਅਵਾਮ ਵੀ ਪਾਲਤੂ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। ਪੈਸਾ ਫੈਕ ਕੇ ਵੋਟ ਬਟੋਰਨ ਦੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੱਕੀ ਆਦਤ ਬਣ ਚੁੱਕੀ ਹੈ।

ਇਪਟਾ ਆਗੂ  ਸੰਜੀਵਨ ਨੇ ਅੱਗੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪੁਰਾਣੇਂ ਸਮਿਆਂ ਵਾਂਗ ਅੱਜ ਕਿਸੇ ਵੀ ਮੁਲਕ ਨੂੰ ਗੁਲਾਮ ਕਰਨ ਲਈ ਬੰਬਾਂ, ਬੰਦੂਕਾਂ, ਤੋਪਾਂ ਮਿਜ਼ਾਇਲਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀਂ। ਉਸਦੇ ਸਭਿਆਚਾਰ, ਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਵਿਰਸੇ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰ ਦੇਵੋ। ਮੁਲਕ ਖੁਦ--ਖੁਦ ਗੁਲਾਮ ਬਣ ਜਾਵੇਗਾ। ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਵਿਦੇਸ਼ੀ  ਤਾਕਤਾਂ ਪਰ ਹੁਣ ਸਾਡੇ ਆਪਣਿਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕਤੇ ਬੜੀ ਸੋਚੀ ਸਮਝੀ ਸਾਜਿਸ਼ ਤਾਹਿਤ ਸਾਡੇ ਸਭਿਆਚਾਰ, ਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਵਿਰਸੇ ਨੂੰ ਗਿਣ-ਮਿੱਥ ਕੇ ਤਬਾਹ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।

ਨਾਟਕਕਾਰ ਅਤੇ ਨਾਟ-ਨਿਰਦੇਸ਼ਕ ਸੰਜੀਵਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲੰਮੇ ਭਾਸ਼ਣ ਨੂੰ ਵੀ ਮੋਰਚੇ ਵਿੱਚ ਬੈਠੀ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸੰਗਤ ਨੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਸੁਣਿਆ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਸੰਜੀਵਨ ਨੇ ਵੀ ਵਾਅਦਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਹਰ ਵੇਲੇ ਇਸ ਮੋਰਚੇ ਦੇ ਨਾਲ ਹਨ। 

The First Sensitive Film on Menopause to Hit Theatres on November 28

 Monday 17th November 2025 From Film Unit Media  Audience Waiting for Hindi feature film “ Me-No-Pause-Me-Play Chandigarh : 17th November 20...