Monday, November 17, 2025

The First Sensitive Film on Menopause to Hit Theatres on November 28

 Monday 17th November 2025 From Film Unit Media 

Audience Waiting for Hindi feature film “Me-No-Pause-Me-Play


Chandigarh
: 17th November 2025: (Media Link Ravinder//Punjab Screen Special)::

Menopause. It’s a phase every woman goes through, yet it remains one of the least discussed topics in our homes. Many women face physical and emotional changes during this time, often feeling confused, isolated, or misunderstood. To bring this important conversation into the mainstream, cinema is stepping forward with a powerful message.

Releasing on November 28 is the Hindi feature film “Me-No-Pause-Me-Play.” This film aims to portray the journey of menopause with honesty, warmth and sensitivity. Presented by Digifilming and Miro Films, the film has been written by Manoj Kumar Sharma, adapted from his own book, and produced by him as well. His vision forms the backbone of the film, giving it both authenticity and depth.

“Me-No-Pause-Me-Play” blends light comedy with real-life emotions, making the subject approachable for every viewer. The film shows that menopause is not a sign of weakness or an ending. It is a natural stage of life that deserves understanding, dignity and support. The story highlights how empathy from family members can transform this phase into a more comfortable and positive experience for women.

The movie features a strong cast, including Kamiya Punjabi, Deepshikha Nagpal, Manoj Kumar Sharma, Aman Verma, Sudha Chandran and Amemi Subah. Their performances bring honesty and heart to the screen. Kamiya Punjabi shared that the film gives voice to every woman who goes through these silent changes but rarely gets the space to express them.

The film also emphasizes the role of relationships. It shows how a woman’s emotional well-being during menopause can be deeply affected by the understanding—or the lack of it—she receives from her family. It highlights how simple awareness and emotional support can make this journey smoother.

“Me-No-Pause-Me-Play” is more than entertainment. It’s an effort to start a conversation that is long overdue. It encourages society to replace silence with awareness and stigma with acceptance.

The film releases in theatres on November 28. Viewers are encouraged to watch it with their families and friends so that this important message reaches every home.

Friday, November 14, 2025

2027 ਵੱਲ ਜਾਂਦੇ ਰਸਤੇ ਦੇਖੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ਤਰਨਤਾਰਨ ਦੇ ਚੋਣ ਨਤੀਜਿਆਂ ਨਾਲ

Posted on Friday 14th November 2025 at 02:30 PM Regarding Tarn Taran Election Result (Punjab Screen Special)
ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੋਸਟ ਸਹੀ ਮਾਰਗ ਦਿਖਾਉਣ ਵਾਲੀ ਵੀ ਹੈ

ਤਰਨਤਾਰਨ
//ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ//ਮੋਹਾਲੀ: 14 ਨਵੰਬਰ 2025: (ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਸਪੈਸ਼ਲ ਡੈਸਕ)::
ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ 
ਤਰਨਤਾਰਨ ਦੀ ਜ਼ਿਮਨੀ ਚੋਣ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵੀ ਆ ਗਏ ਹਨ।
ਇਸ ਵਾਰ ਵੀ "ਪੰਥਕ" ਅਖਵਾਉਂਦੀਆਂ ਧਿਰਾਂ ਕੋਲ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਵਰਗਾ ਦੱਸਣ ਲਈ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਉਂਝ ਅਜਿਹੇ ਨਤੀਜੇ ਸਿਆਸੀ ਅਤੇ ਵਿਚਾਰਧਾਰਕ ਹਲਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਕਿਆਸੇ ਜਾ ਚੁੱਕੇ ਹਨ। ਬਲਿਊ ਸਟਾਰ ਆਪ੍ਰੇਸ਼ਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਅਤੇ ਬਲਿਊ ਸਟਾਰ ਅਪ੍ਰੇਸ਼ਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਅਤੇ ਨਿਸ਼ਾਨਿਆਂ ਵਿੱਚ  ਕੋਈ ਸਪਸ਼ਟ ਨਿਖਾਰ ਨਹੀਂ ਲਿਆ ਸਕੇ।

ਨਵੰਬਰ-84 ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਡੇੜ ਦਹਾਕੇ ਤੱਕ ਚੱਲੇ ਜੁਝਾਰੂ ਸੰਘਰਸ਼ ਮਗਰੋਂ ਵੀ ਸਾਡੇ ਸਿਆਸੀ ਲੀਡਰਾਂ ਕੋਲ ਨੌਜਵਾਨ ਪੀੜ੍ਹੀ ਨੂੰ ਦੱਸਣ ਲਈ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੈ ਜਿਸ ਤੋਂ ਉਹ ਮਾਰਗ ਦਰਸ਼ਨ ਲੈ ਸਕਣ। ਇਹਨਾਂ ਠੋਸ ਹਕੀਕਤਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਜੋ ਜੋ ਕੁਝ ਵੀ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਜਿਹੜੇ ਜਿੰਦੇ ਕਦਮ ਵੀ ਪੁੱਟੇ ਇਹ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹਿੰਮਤ ਹੀ ਹੈ।  

ਇਹਨਾਂ ਰਾਹਾਂ 'ਤੇ ਗਲਤੀਆਂ ਵੀ ਹੋਈਆਂ ਹੋਣਗੀਆਂ ਪਰ ਇਹ ਸੁਭਾਵਕ ਹੀ ਸਨ। ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਦੇ ਚੋਣ ਨਤੀਜਿਆਂ ਮਗਰੋਂ ਕਈ ਵਿਚਾਰ ਅਤੇ ਟਿੱਪਣੀਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਆਈਆਂ ਹਨ।  ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਪੋਸਟ ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਹੁਰਾਂ ਦੀ ਵੀ ਹੈ। ਉਹੀ ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਜਿਹੜੇ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਤੀਕਰਮ, ਆਪਣੀ ਟਿੱਪਣੀ, ਆਪਣਾ ਵਿਚਾਰ ਸਮੇਂ ਦੇ ਐਨ ਮੁਤਾਬਿਕ ਤੁਰੰਤ ਸਾਹਮਣੇ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ਬਿਨਾ ਕਿਸੇ ਭਰਮ ਭੁਲਖੇ ਜਾਂ ਓਹਲੇ ਦੇ..---:

ਪੰਜਾਬ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਮੁੱਦੇ ਵੇਲੇ ਵੀ ਪਾਲੀ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਹੁਰਾਂ ਨੇ ਬੜਾ ਵੇਲੇ ਸਿਰ ਸਟੈਂਡ ਲਿਆ ਅਤੇ ਹੁਣ ਵੀ ਜਦੋਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਪੰਥਕ ਅਤੇ ਸਿਆਸੀ ਧਿਰਾਂ ਖੁਦ ਨੂੰ ਬੇਦਿਲ ਜਾਂ ਹਾਰਿਆ ਹੋਇਆ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਪਾਲੀ ਹੁਰਾਂ ਦੀ ਲਿਖਤ ਰਾਹ ਦਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ। 

Thursday, November 13, 2025

धर्मेंद्र के स्वास्थ्य को लेकर मीडिया के एक हिस्से ने दिखाई थी जल्दबाज़ी..!

Sent on Wednesday 12th November 2025 WhatsApp Regarding He Man Dharmendra From Neelima Sharma

A Special Post By Neelima Sharma:  

लेखिका नीलिमा शर्मा ने किया मीडिया के उस कलंक को धोने का प्रयास 

हिंदी कलम की दुनिया के विशेष हस्ताक्षर नीलिमा शर्मा: 13 नवंबर 2025: (पंजाब स्क्रीन स्पेशल डेस्क)

फिल्मी दुनिया के सबसे लोकप्रिय और प्रिय सितारों में गिने जाने वाले धर्मेंद्र भारतीय सिनेमा के ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने न केवल अपने अभिनय से बल्कि अपने सरल और स्नेहिल व्यक्तित्व से भी दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी। पंजाब के लुधियाना ज़िले के एक गाँव में 8 दिसंबर 1935 को जन्मे धर्मेंद्र बचपन से ही सादगी, मेहनत और आत्मविश्वास का प्रतीक रहे। एक सामान्य कृषक परिवार से निकलकर उन्होंने फिल्मी जगत में जो पहचान बनाई, वह किसी प्रेरणा से कम नहीं। Bollywood के He Man धर्मेंद्र को लेकर मीडिया के एक हिस्से ने दिखाई थी जल्दबाज़ी  

लेखिका नीलिमा शर्मा दिल्ली से 
धर्मेंद्र का फिल्मी सफर 1960 में फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे से शुरू हुआ। शुरूआती संघर्षों के बाद उन्होंने जल्द ही अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। 1966 में आई फिल्म फूल और पत्थर ने उन्हें रातोंरात सुपरस्टार बना दिया। उनकी दमदार संवाद अदायगी, व्यक्तित्व और भावनाओं की सच्चाई ने उन्हें हर वर्ग के दर्शकों का चहेता बना दिया। साठ और सत्तर के दशक में धर्मेंद्र ने एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में दीं,अनुपमा, सत्यकाम, शोले, चुपके-चुपके, राजा जानी, मेरा गाँव मेरा देश, ड्रीम गर्ल, शराबी, प्रतिज्ञा जैसी फिल्मों ने उन्हें बहुआयामी अभिनेता सिद्ध किया। वे जहाँ एक ओर एक्शन हीरो के रूप में “ही-मैन ऑफ बॉलीवुड” कहलाए, वहीं सत्यकाम जैसी गंभीर फिल्मों में उन्होंने अपनी भावनात्मक गहराई से आलोचकों को भी प्रभावित किया। एक युग था धर्मेंद्र जी का। लोग उनके दीवाने थे। उनकी निजी ज़िंदगी में लोग उनके जज़्बातों से जुड़े हुए थे। 

उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्म शोले में वीरू का किरदार आज भी भारतीय सिनेमा का प्रतीकात्मक पात्र माना जाता है। बसंती के साथ उनकी जोड़ी ने पर्दे पर प्रेम की मासूमियत और खिलंदड़पन दोनों को बड़ी सहजता से जीया। वहीं चुपके-चुपके में उन्होंने हास्य अभिनय का जो स्वाद दिया, वह दर्शकों को आज भी आनंदित करता है। धर्मेंद्र की खासियत रही कि वे किसी भी किरदार को पूरी सच्चाई से जीते थे, चाहे वह रोमांटिक नायक हो या समाज के अन्याय के खिलाफ खड़ा किसान।

व्यक्तिगत जीवन में धर्मेंद्र उतने ही भावुक और रूमानी व्यक्ति  रहे हैं। उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर से दो  बेटियां और दो बेटे सनी और बॉबी देओल हैं, जो स्वयं सफल अभिनेता बने। बाद में धर्मेंद्र ने अभिनेत्री हेमा मालिनी से विवाह किया, जिनसे उनकी दो बेटियाँ  Esha और अहाना देओल हैं। पारिवारिक रिश्तों में भी धर्मेंद्र की सहजता और अपनापन हमेशा दिखाई देता है। वे अपने बच्चों के करियर पर गर्व करते हैं और उनके जीवन में सदैव प्रेरक भूमिका निभाते हैं।

राजनीति में भी धर्मेंद्र ने कदम रखा। 2004 में वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर बीकानेर से सांसद चुने गए। यद्यपि उन्होंने राजनीति में अधिक सक्रिय भूमिका नहीं निभाई, फिर भी जनता से उनका जुड़ाव और सादगी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता था। सिनेमा में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2012 में पद्म भूषण सम्मान से अलंकृत किया, जो उनके दशकों लंबे सिने-जीवन का सम्मान था।

कल सोशल मीडिया पर धर्मेंद्र की मृत्यु से जुड़ी झूठी खबरें फैलने से फिल्म जगत में हलचल मच गई। कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और television channel पर यह अफवाह चल पड़ी कि धर्मेंद्र अब नहीं रहे। यह खबर इतनी तेज़ी से वायरल हुई कि कई लोगों ने बिना पुष्टि के श्रद्धांजलि संदेश तक साझा कर दिए। ऐसे में जब धर्मेंद्र का परिवार आगे आया, तो सच्चाई सामने आई। उनकी पत्नी हेमा मालिनी ने तीखी नाराज़गी जताई और कहा कि “ऐसी अफवाहें फैलाना बेहद अमानवीय है। धर्मेंद्र स्वस्थ हैं और उपचाराधीन हैं।” बेटी ईशा देओल ने भी स्पष्ट किया कि “पापा बिल्कुल स्थिर हैं, कृपया इस तरह की झूठी खबरों पर ध्यान न दें।”

इस अफवाह ने न केवल धर्मेंद्र के चाहने वालों को व्यथित किया, बल्कि एक बार फिर यह सवाल उठाया कि सोशल मीडिया के इस दौर में खबरों की सत्यता की जिम्मेदारी कौन लेगा। बिना किसी प्रमाण या आधिकारिक पुष्टि के किसी व्यक्ति के जीवन या मृत्यु से जुड़ी खबरें फैलाना न केवल असंवेदनशीलता है बल्कि मानवीय गरिमा का भी उल्लंघन है। धर्मेंद्र जैसा जीवंत व्यक्तित्व, जिसने भारतीय सिनेमा को इतने यादगार पल दिए, उनके बारे में ऐसी अफवाहें फैलना दुखद है।

धर्मेंद्र का जीवन सादगी और प्रेम का पर्याय रहा है। वे आज भी अपने खेतों, पशुओं और मिट्टी से जुड़े हैं। फिल्मों की चकाचौंध के बीच भी उन्होंने अपने मूल को कभी नहीं भुलाया। यही कारण है कि दर्शक आज भी उन्हें केवल अभिनेता नहीं, बल्कि एक इंसान के रूप में सम्मान देते हैं। उनका व्यक्तित्व यह संदेश देता है कि सच्ची सफलता वही है जो विनम्रता और अपनापन बनाए रखे।

उनकी मुस्कान, संवादों की आत्मीयता, और जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण ने उन्हें न केवल “ही-मैन” बल्कि “ह्यूमन हीरो” बना दिया। धर्मेंद्र ने अपने जीवन और काम से यह सिद्ध किया कि सितारा वही होता है जो समय के पार भी लोगों के दिलों में उजाला छोड़ जाए।

आज जब अफवाहों के इस डिजिटल युग में सत्य और असत्य के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है, धर्मेंद्र जैसे जीवंत कलाकार की गरिमा को समझना और उनका सम्मान करना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है। उनकी यात्रा इस बात का उदाहरण है कि सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का दर्पण भी है। धर्मेंद्र की सादगी, भावनात्मक गहराई और प्रेमपूर्ण व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा रहेगा—क्योंकि धर्मेंद्र केवल अभिनेता नहीं, भारतीय सिनेमा की आत्मा हैं।

धर्मेंद्र का जीवन एक प्रेरक यात्रा है—संघर्ष से सफलता तक, प्रेम से परिवार तक, और सिनेमा से समाज तक। उन्होंने जो कुछ भी किया, पूरे मन और समर्पण से किया। आज जब उनके निधन की झूठी खबरें फैलती हैं, तो यह केवल एक अफवाह नहीं होती—यह उस युग की गरिमा पर चोट होती है जिसने भारतीय सिनेमा को आत्मा दी थी।

धर्मेंद्र आज भी हमारे बीच हैं जीवित, सक्रिय और दर्शकों के प्रेम से भरे हुए। उनके चाहने वालों की एक ही कामना है कि वे शीघ्र पूर्ण स्वस्थ हों और अपनी वही गर्मजोशी और मुस्कान के साथ जीवन की फिल्म में अगला अध्याय लिखें। क्योंकि धर्मेंद्र कोई नाम नहीं एक भाव हैं, एक संवेदना हैं, और भारतीय सिनेमा की अमिट पहचान हैं।  ---नीलिमा  शर्मा

[00:11, 12/11/2025] Neelima Sharma: नीलिमा  शर्मा 

Wednesday, November 12, 2025

19 ਸਾਲਾ ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸੁਮ ਲਈ ਖ਼ੁਦਾ ਬਣਕੇ ਬਹੁੜੇ ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ

Emailed From GSG on Wednesday 12th November 2025 at 6:37 PM Regarding A Miracle By A Doctor

ਹੱਡੀ ਦੇ ਕੈਂਸਰ ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਕਸ਼ਮੀਰੀ ਬੱਚੀ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ DMC ਵਿੱਚ ਨਵੀਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ


ਲੁਧਿਆਣਾ
: 12 ਨਵੰਬਰ 2025: (ਮੀਡੀਆ ਲਿੰਕ ਰਵਿੰਦਰ//ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਸਪੈਸ਼ਲ ਡੈਸਕ) -

ਜੰਮੂ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਪੁੰਛ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ 19 ਸਾਲਾ ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸਮ ਪਿਛਲੇ 3-4 ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਨਰਕ ਭਰੀ ਜ਼਼ਿੰਦਗੀ  ਜਿਉਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਪੱਟ ਵਿੱਚ ਅਨੋਖੇ ਕੈਂਸਰ  ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਸੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਸਨੂੰ ਬੜਾ ਭਿਆਨਕ ਦਰਦ ਸਹਿਣਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਸੀ।

ਵਹੀਦਾ  ਤਬੱਸਮ ਦੇ ਪਿਤਾ ਸਵਰਗੀ ਰਾਸ਼ਿਦ ਖਾਨ ਘਰ ਵਿੱਚ ਇਕੱਲੇ ਕਮਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸਨ ਜੋ ਦੋ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਉਹ ਵੀ ਇਸ ਦੁੱਖ ਦੀ ਘੜੀ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਬੇਸਹਾਰਾ ਛੱਡ ਕੇ  ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਅਲਵਿਦਾ ਕਹਿ ਗਏ।

ਦਯਾਨੰਦ ਮੈਡੀਕਲ ਕਾਲਜ ਐਂਡ ਹਸਪਤਾਲ (ਡੀ.ਐਮ.ਸੀ.ਐਚ.) ਦੇ ਹੱਡੀਆਂ ਨਾਲ ਸਬੰਧਿਤ  ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਅਸਿਸਟੈਂਟ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸੁਮ ਨੂੰ ਰੱਬ ਬਣਕੇ ਬਹੁੜੇ। 

ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ ਨੇ  ਇਨਸਾਨੀਅਤ ਦੀ ਮਿਸਾਲ ਕਾਇਮ ਕਰਦਿਆਂ ਨਾ ਸਿਰਫ ਉਸਦੀ ਸਰਜਰੀ ਹੀ ਕੀਤੀ ਸਗੋਂ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰਕ ਮਿੱਤਰਾਂ ਤੇ ਸਾਥੀ  ਡਾਕਟਰ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਇਲਾਜ਼ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਵੀ ਚੁੱਕਿਆ।

ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸੁਮ ਦੇ ਟਿਊਮਰ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੀਟੀ-ਗਾਈਡਡ ਆਰ ਐਫ ਏ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਹੁਣ ਉਸਨੂੰ ਦਰਦ ਤੋਂ ਰਾਹਤ ਮਿਲੀ ਹੈ। ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਹੇਠ ਜਲਦ ਤੰਦਰੁਸਤ ਹੋਣ ਦਾ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ।

ਵਹੀਦਾ ਤਬੱਸਮ  ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਦੀ ਬੇਟੀ ਨੂੰ ਨਵੀਂ ਜਿੰਦਗੀ ਦੇਣ ਲਈ ਇਨਸਾਨ ਪ੍ਰਸਤ ਦਰਦਮੰਦ ਡਾ. ਅਨੁਭਵ ਸ਼ਰਮਾ ਸਮੇਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਰਜਰੀ ਸਹਿਯੋਗੀਆਂ ਤੇ ਆਰਥਿਕ ਮਦਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਡਾਕਟਰ ਭਾਈਚਾਰੇ ਤੇ ਦਾਨਵੀਰਾਂ  ਦਾ ਦਿਲੋਂ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ ਹੈ।

Monday, November 10, 2025

ਜਿਹੜੇ ਵੀ ਆਪਣੀ ਔਲਾਦ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਲਈ ਫ਼ਿਕਰਮੰਦ ਹਨ...

Emailed from Sanjeevan-nat-karmi on Monday 10ਰਗ+th November 2025 at 5:33 PM Regarding PU Bachao Morcha 

....ਓਹ ਪੰਜਾਬ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਮੋਰਚੇ ਵਿੱਚ ਅੱਗੇ ਆਉਣ-ਸੰਜੀਵਨ

ਸਿੱਖਿਆ, ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਤੋਂ ਜਾਣਬੁਝ ਕੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵਾਂਝੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ-ਸੰਜੀਵਨ


ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ
: 10 ਨਵੰਬਰ 2025: (ਮੀਡੀਆ ਲਿੰਕ ਰਵਿੰਦਰ//ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਸਪੈਸ਼ਲ ਡੈਸਕ)::

ਇਹ ਅਜੇ ਐਤਵਾਰ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ। ਤਾਰੀਖ ਸੀ 09 ਨਵੰਬਰ। ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨਾਟ ਕਰਮੀ ਸੰਜੀਵਨ ਪੰਜਾਬ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਬਚਾਓ ਮੋਰਚੇ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀਆਂ ਸਮੇਤ ਪੁੱਜੇ ਹੋਏ ਸਨ। ਉਸ ਵੇਲੇ ਮੋਰਚੇ ਵਿੱਚ ਮੈਂਬਰ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ ਵੀ ਸਨ। ਨਿਹੰਗ ਵੀ ਸਨ। ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਵੀ ਅਤੇ ਅਤੇ ਕਈ ਹੋਰ ਸੰਗਠਨਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀ ਵੀ। ਉਂਝ ਟਰੈਕਟਰਾਂ ਦਾ ਆਉਣਾ ਜਾਣਾ ਛੇ ਨਵੰਬਰ ਤੋਂ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ। ਮੋਰਚੇ ਦੀ ਚੜ੍ਹਦੀਕਲਾ ਵਾਲਾ ਮਾਹੌਲ ਦੇਖ ਕੇ ਕਈ ਲੋਕ ਅੱਖ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਇਹ ਰੰਗ ਵੀ ਹੁਣ ਦਿੱਲੀ ਵਾਲੇਕਿਸਾਨ ਮੋਰਚੇ ਦਾ ਹੀ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। 

ਉਹਨਾਂ ਹਲੂਣਾ ਦੇਂਦਿਆਂ ਆਖਿਆ-ਸੈਨੇਟ ਬਚਾਓ, ਪਾਣੀ ਬਚਾਓ, ਧੀਆਂ ਬਚਾਓ, ਵਾਤਾਵਰਣ ਬਚਾਓ, ਸਭਿਆਚਾਰ ਬਚਾਓ, ਭਾਸ਼ਾ ਬਚਾਓ, ਪੰਜਾਬੀ ਬਚਾਓ, ਪੰਜਾਬੀਅਤ ਬਚਾਓ। ਕੀ ਇਹ ਸਭ ਬਚਾਉਣ ਦੀ ਜ਼ੁੰਮੇਵਾਰੀ ਸਾਡੇ ਵਰਗੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਹੈ? ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਕਰਨਾ ਹਾਕਿਮਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਇਖ਼ਲਾਕੀ ਫਰਜ਼ ਨਹੀਂ? ਜਾਂ ਫੇਰ ਹਰ ਕਿਸਮ ਹਰ ਨਸਲ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਕ ਧਿਰ ਦੀ ਅੱਖ ਸੱਤਾ 'ਤੇ ਹੀ ਟਿੱਕੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ?

ਸਮੂਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸੰਗਠਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਿਰਸਟੀ ਸੈਨੇਟ ਬਚਾਓ ਮੋਰਚੇ ਦੀ ਹਮਾਇਤ ਕਰਦਿਆਂ ਇਪਟਾ, ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਨਾਟਕਕਾਰ ਅਤੇ ਨਾਟ-ਨਿਰਦੇਸ਼ਕ ਸੰਜੀਵਨ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਹਮਾਇਤ ਕਰਨਾ ਹਰ ਉਸ ਵਿਆਕਤੀ ਦਾ ਫਰਜ਼ ਹੈ ਜੋ ਆਪਣੀ ਔਲਾਦ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਲਈ ਫ਼ਿਕਰਮੰਦ ਹੈ। ਸਿੱਖਿਆ, ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਤੋਂ ਜਾਣ ਬੁੱਝ ਕੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਮੇਂ ਦੇ ਹਾਕਿਮਾਂ ਵੱਲੋਂ ਵਾਂਝੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿੳਂਕਿ ਸਿਖਿਅਤ ਅਤੇ ਤੰਦਰੁਸਤ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਹੱਕ ਮੰਗਣਗੇ। ਹਾਕਿਮ ਨੂੰ ਪਾਲੂਤ ਜਾਨਵਰਾਂ ਵਾਂਗ ਅਵਾਮ ਵੀ ਪਾਲਤੂ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। ਪੈਸਾ ਫੈਕ ਕੇ ਵੋਟ ਬਟੋਰਨ ਦੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੱਕੀ ਆਦਤ ਬਣ ਚੁੱਕੀ ਹੈ।

ਇਪਟਾ ਆਗੂ  ਸੰਜੀਵਨ ਨੇ ਅੱਗੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪੁਰਾਣੇਂ ਸਮਿਆਂ ਵਾਂਗ ਅੱਜ ਕਿਸੇ ਵੀ ਮੁਲਕ ਨੂੰ ਗੁਲਾਮ ਕਰਨ ਲਈ ਬੰਬਾਂ, ਬੰਦੂਕਾਂ, ਤੋਪਾਂ ਮਿਜ਼ਾਇਲਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀਂ। ਉਸਦੇ ਸਭਿਆਚਾਰ, ਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਵਿਰਸੇ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰ ਦੇਵੋ। ਮੁਲਕ ਖੁਦ--ਖੁਦ ਗੁਲਾਮ ਬਣ ਜਾਵੇਗਾ। ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਵਿਦੇਸ਼ੀ  ਤਾਕਤਾਂ ਪਰ ਹੁਣ ਸਾਡੇ ਆਪਣਿਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕਤੇ ਬੜੀ ਸੋਚੀ ਸਮਝੀ ਸਾਜਿਸ਼ ਤਾਹਿਤ ਸਾਡੇ ਸਭਿਆਚਾਰ, ਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਵਿਰਸੇ ਨੂੰ ਗਿਣ-ਮਿੱਥ ਕੇ ਤਬਾਹ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।

ਨਾਟਕਕਾਰ ਅਤੇ ਨਾਟ-ਨਿਰਦੇਸ਼ਕ ਸੰਜੀਵਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲੰਮੇ ਭਾਸ਼ਣ ਨੂੰ ਵੀ ਮੋਰਚੇ ਵਿੱਚ ਬੈਠੀ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸੰਗਤ ਨੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਸੁਣਿਆ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਸੰਜੀਵਨ ਨੇ ਵੀ ਵਾਅਦਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਹਰ ਵੇਲੇ ਇਸ ਮੋਰਚੇ ਦੇ ਨਾਲ ਹਨ। 

Friday, October 31, 2025

“Me No Pause Me Play”

A film that awaken something within


New Delhi
: (By Punjab Screen Special//Entertainment Desk)::

There are films that entertain, and then there are films that awaken something within.

Me No Pause Me Play” belongs to the latter, a film that speaks to every woman who has ever been told her time has passed.

Directed by Samar K. Mukherjee and inspired by Manoj Kumar Sharma’s heartfelt book, the film explores menopause not as an end, but as the rebirth of strength, grace, and identity. It is a cinematic poem that celebrates a woman’s right to evolve, to pause, and to begin again unapologetically.

The story weaves together moments of vulnerability and power, silence and rediscovery.

It reminds audiences that menopause is not about losing youth but about finding a deeper rhythm  one that beats with wisdom and freedom.

Featuring stellar performances by Kamya Punjabi, Deepshikha Nagpal, and Manoj Kumar Sharma, the film also stars Aman Verma, Karan Singh Chhabra, and Amy Misobbah in pivotal roles.

Dance icon Sudha Chandran delivers a breathtaking performance; her dance becomes the language of resilience and rebirth, a metaphor for every woman who learns to dance again after the world calls her still.

The film’s soul-stirring title track, voiced by the legendary Usha Uthup, echoes empowerment, rhythm, and the ageless beauty of courage.

Written by Manoj Kumar Sharma and Shakeel Qureshi, the screenplay flows like a diary of emotions raw, real, and deeply human.

As the world still hesitates to talk about menopause, “Me No Pause Me Play” steps forward with compassion, art, and courage.

It is not merely a film  it is a movement, a mirror, and a message that says:

“When life hits pause, true courage lies in pressing play.”

The film will have its world premiere on 28th November 2025, marking a historic moment in Indian cinema a film that doesn’t just tell a story but heals through it.

Monday, October 27, 2025

PAU ਵਾਟਰ ਇੰਜੀਨੀਅਰਿੰਗ ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਦਫਤਰ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ

Emailed on Monday 27th October 2025 at 4:14 PM Regarding PAU union

ਪੀ.ਏ.ਯੂ. ਇੰਪਲਾਈਜ਼ ਯੂਨੀਅਨ ਦੀ ਐਗਜ਼ੈਕੁਟਿਵ ਕੌਂਸਲ ਵੱਲੋ ਤਿੱਖੇ ਰੋਸ ਅਤੇ ਟੋਹੜਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ 

ਪ੍ਰਧਾਨ ਬਲਦੇਵ ਸਿੰਘ ਵਾਲੀਆ ਅਤੇੇ ਸੋਇਲ ਮੁਖੀ ਡਾ: ਜੇ.ਪੀ.ਸਿੰਘ ਹੋਏ ਆਹਮੋ ਸਾਹਮਣੇ  


ਲੁਧਿਆਣਾ: 27 ਅਕਤੂਬਰ 2025: (ਮੀਡੀਆ ਲਿੰਕ ਰਵਿੰਦਰ//ਪੰਜਾਬ ਸਕਰੀਨ ਸਪੈਸ਼ਲ ਡੈਸਕ)::

ਕੋਈ ਵੇਲਾ ਸੀ ਜਦੋਂ ਸੀਪੀਆਈ ਦੇ ਲੀਡਰ ਕਾਮਰੇਡ ਰੂਪ ਸਿੰਘ ਰੂਪ ਅਤੇ ਡੀ ਪੀ ਮੌੜ ਪੰਜਾਬ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮ ਲੀਡਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਜੁਝਾਰੂ ਸੁਭਾਅ ਵਾਲੇ ਲੀਡਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਗਿਣੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ। ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਲਈ ਉਹ ਵੇਲਾ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੋਂਦ ਬੜਾ ਸੁਨਹਿਰਾ ਵੇਲਾ ਗਿਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਜਦੋਂ ਕਾਮਰੇਡ ਰੂਪ 'ਤੇ ਗੋਲੀ ਚੱਲੀ ਤਾਂ ਜਾਪਿਆ ਸੀ ਕਿ ਖੱਬੀ ਧਿਰ ਦਾ ਇਹ ਮੋਰਚਾ ਸ਼ਾਇਦ ਟੁੱਟ ਜਾਏਗਾ। ਇਸ ਬਜ਼ੁਕ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਕਾਮਰੇਡ ਮੌੜ ਨੇ ਇਹ ਕਮਾਨ ਸੰਭਾਲੀ ਅਤੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੇ ਆਤਮ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੱਤਾ। ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦੀ ਵਾਲਾ ਮਾਹੌਲ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਉਦੋਂ ਵੀ ਕਈ ਉੱਚ ਅਫਸਰ ਅਜਿਹੇ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਉਣ ਨਾਢੂ ਖਾਂ ਮਸਝਦੇ ਸਨ। ਉਸ ਵੇਲੇ ਦੇ ਦੌਰ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸੱਚੀਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ ਹਨ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਕਾਮਰੇਡ ਮੌੜ ਨੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੇ ਹੱਕਾਂ ਦੀਆਂ ਮੰਗਾਂ ਦ੍ਰਿੜਤਾ ਵਾਲੇ ਸਟੈਂਡ ਨਾਲ ਮਨਵਾਈਆਂ। ਫਿਰ ਇੱਕ ਸਮਾਂ ਆਇਆ ਹਜਦੋਂ ਕਾਮਰੇਡ ਮੌੜ ਰਿਟਾਇਰ ਹੋ ਗਏ। ਉਸ ਖਲਾਅ ਵਾਲੇ ਸਾਮਣੇ ਵਿੱਚ ਕਾਮਰੇਡ ਮੌੜ ਦੀਆਂ ਸਲਾਹਾਂ ਨਾਲ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੇ ਕਾਮਰੇਡ ਬਲਦੇਵ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਆ[ਨੇ ਆਗੂ ਵੱਜੋਂ ਤਰਜੀਹ ਦਿੱਤੀ। 

ਇਸ ਸਨਮਾਨਯੋਗ ਅਹੁਦੇ ਨਾਲ ਨਿਵਾਜੇ ਜਾਣ ਮਗਰੋਂ ਛੇਤੀ ਹੀ ਕਾਮਰੇਡ ਬਲਦੇਵ ਸਿੰਘ ਵਾਲੀਆ  ਨੇ ਵੀ ਸਾਬਿਤ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀਆ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੇ ਜੁਝਾਰੂ ਸੁਭਾਅ ਵਾਲੀ ਇਸ ਰਵਾਇਤ ਨੂੰ ਟੁੱਟਣ ਨਹੀਂ ਦੇਣਗੇ। ਬਹੁਤ ਵਾਰ ਮੌਕੇ ਆਏ ਜਦੋਂ ਇਹ ਗੱਲ ਸਾਬਿਤ ਵੀ ਹੋਈ। ਅੱਜ ਫੇਰ ਇੱਕ ਵਾਰ ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਆਈ ਜਦੋਂ ਇਮਤਿਹਾਨ ਵਰਗੀ ਹਾਲਤ ਸੀ। ਉੱਚ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਆਹਮਣੇ ਸਾਹਮਣੇ ਗੱਲ ਕਰਨੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਗਈ ਸੀ। 

ਪੀ.ਏ.ਯੂ. ਇੰਪਲਾਈਜ਼ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਬਲਦੇਵ ਸਿੰਘ ਵਾਲੀਆ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਡਾ: ਜੇ.ਪੀ. ਸਿੰਘ ਵੱਲੋ ਪਿਛਲੇ ਲੰਬੇ ਸਮੇ ਤੋ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੂੰ ਨਾਜਾਇਜ ਤੰਗ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੂੰ ਧੱਕੇ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਜਾਬ-ਪ੍ਰੋਫਾਈਲ ਦੇ ਉਲਟ ਚਾਰਜ ਲੈਣ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜਿਹਨਾਂ  ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਕੋਲ ਇੱਕ ਤੋ ਵੱਧ ਲੈਬਾਂ ਦਾ ਚਾਰਜ ਦਿੱਤਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ਉਹਨਾਂ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੂੰ ਹੋਰ ਡਿਊਟੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਪ੍ਰਧਾਨ ਵਾਲੀਆ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਾਡੇ ਇੱਕ ਮੁਲਾਜ਼ਮ ਦੀ ਸਲਾਨਾ ਗੁਪਤ ਰਿਪੋਰਟ ਉਸ ਦੇ ਇੰਚਾਰਜ਼ ਵੱਲੋ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਲਿਖੀ ਗਈ ਜੋ ਕਿ ਮੁਖੀ ਵੱਲੋ ਨਾ-ਤਸੱਲੀਬਖਸ਼ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ। ਇਸ ਤੋ ਇਲਾਵਾ ਅਧਿਕਾਰੀਆ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਸਾਡੇ ਇੱਕ ਮੁਲਾਜ਼ਮ ਨੂੰ ਗਲਤ ਚਾਰਜ਼ਸ਼ੀਟ ਜਾਰੀ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਰੀ ਰੋਸ ਹੈ। ਐਗਜੈਕਟਿਵ ਕੌਂਸਲ ਵੱਲੋ ਇਸ ਸਬੰਧੀ ਡ: ਜੇ.ਪੀ.ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਕਈ ਵਾਰ ਮੁਲਾਕਾਤ ਕਰਕੇ ਇਹਨਾਂ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਬਾਰੇ ਗੱਲਬਾਤ ਕੀਤੀ, ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਦੇ ਉਪਰ ਕੋਈ ਅਸਰ ਨਹੀ ਹੋਇਆ। ਇਸ ਸਬੰਧੀ ਉਚੇਰੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਜਾਣੂ ਕਰਾਈਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਲਿਖਤੀ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਪਰੰਤੂ ਕਿਸੇ ਵੱਲੋ ਕੋਈ ਕਾਰਵਾਈ ਨਹੀ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਐਗਜੈਕਟਿਵ ਕੋਂਸਲ ਵੱਲੋ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਇਹ ਰਾਹ ਅਖਤਿਆਰ ਕਰਨਾ ਪਿਆ। ਇਸ ਉਪਰੰਤ ਐਗਜੈਕਿਟਵ ਕੌਸਲ ਵੱਲੋ ਡਾ: ਜੇ.ਪੀ.ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੋ ਦਿਨ ਦਾ ਟਾਇਮ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਕਿ ਉਸ ਵੱਲੋ ਜੋ ਗਲਤ ਆਰਡਰ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ ਉਹ ਵਾਪਿਸ ਲਏ ਜਾਣ ਅਤੇ ਪੀ.ਏ.ਯੂ. ਅਥਾਰਟੀ ਨੂੰ ਵੀ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ ਕਿ ਜੋ ਇਸ ਵੱਲੋ ਸਾਡੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮ ਨੂੰ ਗਲਤ ਚਾਰਜ਼ਸ਼ੀਟ ਜਾਰੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ ਉਹ ਵਾਪਿਸ ਲਈ ਜਾਵੇ ਅਤੇ ਜੋ ਗੁਪਤ ਰਿਪੋਰਟਾਂ ਗਲਤ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਖਰਾਬ ਕੀਤੀਆ ਗਈਆ ਹਨ ਉਹ ਠੀਕ ਕੀਤੀਆ ਜਾਣ ਨਹੀ ਤਾਂ ਇਸ ਦੇ ਖਿਲਫ ਸੰਘਰਸ਼ ਹੋਰ ਤਿੱਖਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ।

ਇਸ ਮੋਕੇ ਲਾਲ ਬਹਾਦਰ ਯਾਦਵ, ਬਿੱਕਰ ਸਿੰਘ, ਨਵਨੀਤ ਸ਼ਰਮਾਂ , ਨਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸੇਖੋ, ਕੇਸ਼ਵ ਸੈਣੀ, ਗੁਰਇਕਬਾਲ ਸਿੰਘ, ਧਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸਿੱਧੂ, ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਸਤਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਹਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਕਰਨੈਲ ਸਿੰਘ, ਜਗਦੀਪ, ਸਿੰਘ, ਰਕੇਸ਼ ਕੁਮਾਰ, ਸੁਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਪ੍ਰਿੰਸ ਗਰਗ, ਹੁਸਨ ਕੁਮਾਰ, ਹਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ, ਇੰਦਰਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਜਤਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸੈਣੀ ਅਤੇ ਤੇਜਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਵੀ ਹਾਜ਼ਰ ਰਹੇ।

ਆਉਣ ਵਾਲਾ ਸਮਾਂ ਨਿਸਚੇ ਹੀ ਵਧੇਰੇ ਇਮਤਿਹਾਨਾਂ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਅਤੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮ  ਸੰਗਠਨ ਕੀ ਕੀ ਪੈਂਤੜਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਇਸ ਦਾ ਪਤਾ ਵੀ ਨਾਲ ਨਾਲ ਲੱਗਦੇ ਹੀ ਰਹਿਣਾ ਹੈ। 

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